Prayagraj News: अधीनस्थों पर नियंत्रण न रहना कदाचार नहीं, हाईकोर्ट ने जेल अधीक्षक की पेंशन कटौती का आदेश रद्द किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला — इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अधीनस्थों पर नियंत्रण खो देना गंभीर कदाचार की श्रेणी में नहीं आता। न्यायालय ने इस आधार पर एक जेल अधीक्षक की तीन वर्षों तक 10% पेंशन कटौती के आदेश को रद्द कर दिया है।

न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की एकलपीठ ने राज किशोर सिंह, जेल अधीक्षक, इटावा के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि कदाचार और लापरवाही/निष्क्रियता दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं। ऐसे मामलों में सिविल सेवा विनियम 351-A के तहत दंड नहीं दिया जा सकता, जब तक वह सरकार को गंभीर नुकसान या घोर कदाचार की श्रेणी में न आता हो।

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राज किशोर सिंह को 1994 में डिप्टी जेलर के पद पर नियुक्त किया गया था। पदोन्नति के बाद वह 1 जुलाई 2017 को इटावा जेल के अधीक्षक बनाए गए। उनके कार्यकाल के दौरान दो सजायाफ्ता कैदी जेल से फरार हो गए। इस पर 11 नवंबर 2019 को उनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया जिसमें कहा गया कि उनका अपने अधीनस्थों पर कोई नियंत्रण नहीं था और जरूरी सुरक्षा उपाय नहीं किए गए।

30 नवंबर 2021 को उनके सेवानिवृत्त होने के बाद, सीएसआर के नियम 351-A के अंतर्गत विभागीय जांच जारी रही। जांच पूरी होने पर उनकी पेंशन से 15% की कटौती का आदेश हुआ, जबकि अन्य अधिकारियों को केवल मामूली सजा दी गई।

राज्य सरकार ने बाद में यह आदेश वापस ले लिया और आयोग को दोबारा विचार के लिए मामला सौंपा। इसके बाद आयोग ने तीन वर्षों तक उनकी पेंशन में 10% की कटौती का आदेश दिया, जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने पाया कि याची ने जेल की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कई पत्र लिखे थे, लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। साथ ही, उनके निर्देशों को लागू करने की जिम्मेदारी जेलर और डिप्टी जेलर की थी, जिन्हें अपेक्षाकृत हल्की सजा दी गई। ऐसे में याची पर निष्क्रियता या लापरवाही का आरोप नहीं लगाया जा सकता।

कोर्ट का निर्देश

हाईकोर्ट ने पेंशन कटौती के आदेश को रद्द करते हुए, याची को सभी लाभों के साथ 9% ब्याज सहित पेंशन की कटी हुई राशि लौटाने का आदेश दिया।

यह फैसला सिविल सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण नजीर के रूप में देखा जा रहा है।

Edited By: Parakh Khabar

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