- Hindi News
- उत्तर प्रदेश
- लखनऊ
- अटल बिहारी वाजपेयी: लखनऊ से अटूट रिश्ता और अमिट छाप
अटल बिहारी वाजपेयी: लखनऊ से अटूट रिश्ता और अमिट छाप
लखनऊ। अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत और लखनऊ से उनकी गहरी जुड़ाव की यादें बुधवार को शहर के हर कोने में दिखीं। पांच बार लगातार लोकसभा में इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वाजपेयी ने 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था, लेकिन लखनऊ के साथ उनकी वाबस्तगी हमेशा कायम रही।
अटल जी की छवि और चुनावी प्रभाव
साल 2009 में जब लालजी टंडन ने लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़ा, तो उन्होंने वाजपेयी की गैरमौजूदगी में उनकी ‘खड़ाऊं’ और एक अपील का सहारा लिया। टंडन ने बताया था कि, "अटल जी के बिना लखनऊ की कल्पना मुश्किल थी। वे बीमारी के कारण लखनऊ नहीं आ सके, इसलिए मैंने उनकी ‘खड़ाऊं’ से प्रचार किया।"
इस चुनाव के बाद टंडन ने अपनी विधानसभा सीट खाली की। उपचुनाव में प्रचार के दौरान भाजपा नेता अमित पुरी ने वाजपेयी के कुर्ते का इस्तेमाल किया, जिसे वह दिल्ली से लाए थे। उन्होंने इसे प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाकर वाजपेयी के प्रति समर्थन जाहिर किया।
अटल जी का संदेश और शैली
वाजपेयी के विचार और उनके संवाद करने का अंदाज उनकी पहचान थे। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने उनकी 100वीं जयंती के अवसर पर कहा, "अटल जी अक्सर कहा करते थे, 'न बंदूक से, न गोली से, बात बनेगी बोली से।'" उन्हें भारतीय राजनीति का 'अजातशत्रु' कहा जाता था।
लखनऊ में वाजपेयी की यादें हर जगह मौजूद हैं—लोक भवन में उनकी 25 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा, हजरतगंज में 'अटल चौक', और अब पुराने शहर में उनकी एक नई प्रतिमा।
सभी समुदायों में स्वीकार्यता
वाजपेयी की लोकप्रियता सीमाओं से परे थी। लखनऊ के मुस्लिम समाज के लोग आज भी उस समय को याद करते हैं जब उन्होंने भाजपा के खिलाफ होने के बावजूद वाजपेयी को वोट दिया। अतहर नबी जैसे साहित्यप्रेमियों ने मुस्लिम बहुल इलाकों में उनके समर्थन में प्रचार किया।
प्रमुख कवि सर्वेश अस्थाना ने बताया, "उर्दू के कई प्रमुख कवियों ने अटल जी के लिए प्रचार किया। उनकी अपील ने बाधाओं को तोड़ दिया और माहौल उनके पक्ष में बना दिया।"
अटल जी की कविताएं और भावनात्मक जुड़ाव
अटल बिहारी वाजपेयी को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता का सहारा लेने की आदत थी। उनकी कविता "मौत से ठन गई" उनके भीतर की उथल-पुथल का उदाहरण है। यह कविता उन्होंने 1988 में अमेरिका में एक सर्जरी से पहले लिखी थी। इसमें उन्होंने लिखा था,
"तू दबे पांव, चोरी छुपे से न आ,
सामने वार कर, फिर मुझे आज़मा।"
प्रधानमंत्री के रूप में यात्रा
वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री बने। पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए, फिर 1998-1999 में 13 महीने के लिए, और आखिर में 1999 से 2004 तक पांच साल का पूर्ण कार्यकाल पूरा किया। वह पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
अटल जी की स्थायी छाप
लखनऊ नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि अब भी अटल जी के नाम पर इमारतों, सड़कों, और ब्लॉकों के नाम रखने के प्रस्ताव आते रहते हैं। उनकी यादें और करिश्मा आज भी भाजपा कार्यकर्ताओं और आम जनता के दिलों में जिंदा हैं।
पेशे से वकील शैलेंद्र शर्मा, जिन्हें 'अटल' उपनाम दिया गया, ने कहा, "अटल जी ने मुझे अपनी खुद की पहचान बनाने की सलाह दी थी। लेकिन उनका प्रभाव हमेशा मेरे साथ रहेगा।"
अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व और उनका जुड़ाव लखनऊ के इतिहास में हमेशा जीवित रहेगा। उनका नाम लखनऊ का पर्याय बन चुका है।