विद्रोह की ज्वाला थे मंगल पांडेय, अंग्रेजों ने तय तारीख से पहले ही दे दी थी फांसी

भारत की आजादी की लड़ाई के पहले क्रांतिकारी वीर मंगल पांडेय का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। 1857 की क्रांति की ज्वाला भड़काने वाले मंगल पांडेय ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका और देश की आजादी की नींव रख दी। उनकी बहादुरी और बलिदान से भयभीत होकर अंग्रेजों ने तय तारीख से पहले ही 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी।

बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम

हर वर्ष 8 अप्रैल को मंगल पांडेय के बलिदान दिवस पर बलिया जनपद सहित देशभर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इस वर्ष भी मंगलवार को जनपद के कई क्षेत्रों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

यह भी पढ़े - Lakhimpur Kheri News: मानसिक रूप से विक्षिप्त युवक का तांडव, तीन लोग घायल

मंगल पांडेय: जन्म और प्रारंभिक जीवन

मंगल पांडेय का जन्म 30 जनवरी 1831 को बलिया जिले के नगवा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सेना में भर्ती के समय तक धर्म और परंपरा को मान्यता दी जाती थी, लेकिन अंग्रेज धीरे-धीरे सैनिकों को धर्मांतरण की ओर धकेलने लगे। बैरकपुर की एक कारतूस फैक्ट्री में दलित कर्मचारी माता दिन द्वारा एक टिप्पणी से मंगल पांडेय को अहसास हुआ कि अंग्रेज किस तरह साजिश कर भारतीयों की आस्था को चोट पहुंचा रहे हैं।

बगावत की चिंगारी

29 मार्च 1857 को मंगल पांडेय ने बैरकपुर परेड ग्राउंड में ब्रिटिश अधिकारियों बॉफ और सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली मार दी। उन्होंने साथी सैनिकों को कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी की सच्चाई बताते हुए विद्रोह के लिए प्रेरित किया। जब कर्नल ह्वीलर ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया, तो किसी भी सैनिक ने आदेश नहीं माना।

अंग्रेजों की घबराहट और जल्दबाजी

विद्रोह की आग फैलने के डर से अंग्रेजों ने मंगल पांडेय को 8 अप्रैल 1857 को सुबह 5:30 बजे फांसी पर लटका दिया, जबकि तय तारीख 18 अप्रैल थी। कोलकाता से जल्लाद बुलाकर उन्हें बैरकपुर छावनी के परेड मैदान में फांसी दी गई।

सम्मान और विरासत

1984 में भारत सरकार ने मंगल पांडेय के सम्मान में डाक टिकट जारी किया। उनके विरुद्ध सैनिक अदालत का फांसी का आदेश आज भी जबलपुर हाईकोर्ट म्यूजियम में संरक्षित है।

नगवा गांव पर अत्याचार

मंगल पांडेय के बलिदान के बाद नगवा गांव को अंग्रेजों के अत्याचारों का सामना करना पड़ा। गांव के कई लोग पलायन कर पटखौली, सहतवार, डुमरिया आदि गांवों में बस गए। आज भी उनके वंशज आदि ब्रह्म बाबा की पूजा-अर्चना के साथ अपनी पहचान बनाए हुए हैं।

मंगल पांडेय की कहानी केवल इतिहास नहीं, बल्कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने की मिसाल है। उनका जीवन आज भी नई पीढ़ियों को देशभक्ति और साहस का संदेश देता है।

Edited By: Parakh Khabar

खबरें और भी हैं

स्पेशल स्टोरी

Copyright (c) Parakh Khabar All Rights Reserved.