बलिया: सनातन संस्कृति और आस्था का प्रतीक महाकुंभ: जानिए इससे जुड़ी खास बातें

बलिया: भारत अपनी सनातन संस्कृति, धार्मिक मान्यताओं और विविध परंपराओं के लिए पूरे विश्व में अद्वितीय है। विभिन्न भाषाओं, पर्व-त्योहारों, रीति-रिवाजों और सामाजिक-सांस्कृतिक विरासतों के साथ यह देश विश्व पटल पर अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। इन्हीं विशेषताओं में से एक है 'महाकुंभ' पर्व, जो आस्था और संस्कृति का एक अद्वितीय संगम है।

इस वर्ष महाकुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान कर पुण्य अर्जित करेंगे। यह पर्व सनातन धर्म की आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है।

यह भी पढ़े - Kasganj News: झोपड़ी में आग से दिल दहलाने वाला हादसा, दो मासूम बच्चियों की जिंदा जलकर मौत

महाकुंभ: एक ऐतिहासिक परंपरा

महाकुंभ का आयोजन प्राचीन काल से होता आ रहा है। यह पर्व हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित किया जाता है।

  • हरिद्वार: गंगा नदी के तट पर
  • प्रयागराज: गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर
  • नासिक: गोदावरी नदी के किनारे
  • उज्जैन: शिप्रा नदी के तट पर

महाकुंभ में देशभर के विभिन्न कोनों से श्रद्धालु आकर स्नान करते हैं और सामाजिक व सांस्कृतिक एकता का संदेश देते हैं।

'कुंभ' शब्द का अर्थ और महत्व

'कुंभ' का अर्थ 'कलश' या 'घड़ा' है। इसे शुभ और मंगलकारी माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ को अमृत का प्रतीक भी माना जाता है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पौराणिक कथाएं और कुंभ का महत्व

समुद्र मंथन की कथा:

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्ति के लिए क्षीरसागर का मंथन किया। मंथन के दौरान 14 रत्नों में से अमृत कलश भी निकला। इस अमृत को लेकर देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ। अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए जयंत (इंद्र पुत्र) ने उसे लेकर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। यात्रा के दौरान अमृत की कुछ बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में गिरीं। यही कारण है कि इन चार स्थानों को कुंभ मेले के लिए पवित्र माना जाता है।

ज्योतिषीय परंपरा और कुंभ

कुंभ पर्व ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है।

  • जब वृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तो हरिद्वार में कुंभ लगता है।
  • वृहस्पति मेष राशि में और सूर्य-चंद्रमा मकर राशि में माघ अमावस्या पर होते हैं, तो प्रयागराज में कुंभ मनाया जाता है।
  • जब सूर्य और वृहस्पति मेष राशि में होते हैं, तो नासिक में गोदावरी तट पर कुंभ लगता है।
  • वृहस्पति सिंह राशि और सूर्य मेष राशि में होने पर उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे कुंभ पर्व का आयोजन होता है।

महाकुंभ: एक वैश्विक पहचान

महाकुंभ का आयोजन हर 144 वर्षों में होता है, जब 12 बार कुंभ संपन्न हो चुके होते हैं। इस बार प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, जहां लगभग 40 से 50 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है।

महाकुंभ का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

महाकुंभ न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक भी है। यह पर्व भारत को एक सूत्र में बांधता है और विश्व के समक्ष भारतीय संस्कृति की विशालता और सौहार्द का परिचय कराता है।

महाकुंभ पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारत की सनातन संस्कृति, आध्यात्मिकता और विश्व बंधुत्व का एक सजीव उदाहरण है। यह पर्व हमें आस्था, एकता और मानवता का संदेश देता है।

डाॅ. गणेशकुमार पाठक

पूर्व प्राचार्य, जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया

संपर्क:

मो. 8887785152

Email: [email protected]

Edited By: Parakh Khabar

खबरें और भी हैं

स्पेशल स्टोरी

Copyright (c) Parakh Khabar All Rights Reserved.