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Varanasi News: काशी में उमड़ा आस्था का सैलाब, 20 लाख श्रद्धालु पहुंचे, 2 किमी लंबी कतार, 4 घंटे में मिल रहे बाबा के दर्शन
वाराणसी। महाकुंभ के तीसरे शाही स्नान के बाद अखाड़ों के संत काशी पहुंच रहे हैं, जिससे शहर में श्रद्धालुओं की अभूतपूर्व भीड़ उमड़ रही है। इस भारी भीड़ को नियंत्रित करने और किसी भी आकस्मिक स्थिति से बचाव के लिए प्रशासनिक अमला सड़कों पर उतरा हुआ है। अधिकारी लगातार क्षेत्र में भ्रमण कर भीड़ की निगरानी कर रहे हैं और रोज़ नई रणनीतियां बना रहे हैं।
सड़कों पर वाहनों की आवाजाही पर रोक
हर-हर महादेव के जयघोष से गूंज उठी काशी
श्रद्धालु मैदागिन से मंदिर तक और ललिता घाट से दशाश्वमेध तक लंबी कतारों में लगे रहे। नागा साधु भी काशी पहुंच चुके हैं, जिससे आस्था का माहौल और भी गहराता जा रहा है। सुबह से लेकर देर रात तक श्रद्धालुओं की संख्या में कोई कमी नहीं दिख रही। हर तरफ "हर-हर महादेव" के उद्घोष गूंज रहे हैं। दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 4 घंटे लाइन में खड़ा रहना पड़ रहा है, लेकिन आस्था के आगे यह इंतजार भी भक्तों के जोश को कम नहीं कर रहा।
रेल और सड़क यातायात पर भारी दबाव
महाकुंभ से लौट रहे यात्रियों की वजह से काशी का रेलवे और सड़क यातायात दोनों अत्यधिक व्यस्त हैं। रेलवे अधिकारियों के अनुसार, वाराणसी, बनारस और वाराणसी सिटी स्टेशन से बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रयागराज, रामबाग और झूंसी के लिए रवाना हुए।
महाकुंभ के दौरान वाराणसी से प्रयागराज के लिए 10 से 31 जनवरी तक 300 विशेष ट्रेनों का संचालन किया गया और उतनी ही ट्रेनों ने यात्रियों को वापस लाने का काम किया। बढ़ती भीड़ को देखते हुए नियमित ट्रेनों के साथ-साथ स्पेशल ट्रेनों की भी व्यवस्था की गई थी। जनवरी के अंतिम दो दिनों में यात्रियों की संख्या चरम पर थी।
जो प्रयागराज नहीं पहुंचे, वे पहले काशी आए
महाकुंभ में शामिल होने वाले देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने पहले काशी का रुख किया। कुछ लोग जो सीधे प्रयागराज नहीं जा सके, वे पहले वाराणसी पहुंचे, यहां गंगा स्नान और बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद प्रयागराज के लिए रवाना हुए। इससे रेलवे और बसों पर भारी दबाव बढ़ गया। प्रशासन ने स्टेशनों पर विशेष निगरानी और सुविधाओं का विस्तार किया, ताकि यात्रियों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।
काशी में भक्तों का सैलाब, हर तरफ आस्था का उल्लास
काशी में आस्था का ऐसा जनसैलाब उमड़ा है, जो अपने आप में ऐतिहासिक है। स्थानीय लोग भी मान रहे हैं कि इतनी भीड़ को संभालना इंसान के बस की बात नहीं, बल्कि स्वयं बाबा विश्वनाथ ही इस भीड़ को नियंत्रित कर रहे हैं।