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Prayagraj News: साइबर अपराध एक मूक वायरस की तरह फैल रहा
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साइबर अपराध से जुड़े एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि भारत में साइबर अपराध एक मूक वायरस की तरह फैल रहा है। इसने अनगिनत निर्दोष पीड़ितों को प्रभावित किया है, जो अपनी मेहनत की कमाई इस जाल में फंसकर गंवा देते हैं। कोर्ट ने इस पर चिंता व्यक्त की कि डिजिटल तकनीक के तेजी से प्रसार और व्यापक उपयोग के कारण फिशिंग, रैनसमवेयर, साइबर स्टॉकिंग और डाटा उल्लंघन जैसे अपराध तेजी से बढ़े हैं। इन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की आवश्यकता है।
मामले में पीड़िता काकोली दास को एक कॉल प्राप्त हुई, जिसमें कॉलर ने खुद को कूरियर कंपनी का प्रतिनिधि बताते हुए कहा कि उनके नाम पर ताइवान भेजे जा रहे पार्सल में 200 ग्राम एमडीएमए जैसी अवैध सामग्री है। इसके बाद यह कॉल एक अन्य व्यक्ति को ट्रांसफर कर दी गई, जिसने खुद को अपराध शाखा का पुलिस उपायुक्त बताया। इस व्यक्ति ने पीड़िता को डिजिटल तरीके से गिरफ्तार कर लिया और उनसे बैंक खाता विवरण साझा करने का दबाव बनाया।
तीन दिनों के भीतर साइबर अपराधियों ने पीड़िता के बैंक खातों से आरटीजीएस के माध्यम से 1.48 करोड़ रुपये निकाल लिए।
आरोपी का पक्ष
आरोपी निशांत राय, जो बीबीए का छात्र है, का कहना है कि उसे झूठे आरोपों में फंसाया गया है। उसका दावा है कि उसके बैंक खाते में कोई लेनदेन नहीं हुआ और उसे सह-आरोपियों के बयानों के आधार पर फंसाया गया है। वह 7 मई 2024 से जेल में है, लेकिन अभी तक उसके खिलाफ कोई आरोप तय नहीं हुआ है।
सरकार का पक्ष
सरकारी अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि पीड़िता से ठगे गए रुपयों में से 62 लाख रुपये संधू इंटरप्राइजेज के खाते में स्थानांतरित किए गए। यह खाता सह-आरोपी अमरपाल सिंह और उनकी पत्नी द्वारा संचालित किया जा रहा था। निशांत राय से बरामद सिम कार्ड संधू इंटरप्राइजेज के बैंक खाते से जुड़ा हुआ पाया गया, जिससे उसकी संलिप्तता साबित होती है।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने यह कहते हुए आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी कि सह-आरोपियों के खिलाफ जांच अभी चल रही है और निशांत के खिलाफ भी आरोप तय नहीं किए गए हैं। कोर्ट ने साइबर अपराध के गंभीर दुष्प्रभावों को देखते हुए सख्ती से कार्रवाई की जरूरत पर बल दिया।