पीलीभीत: खालिस्तानी आतंकवाद का गढ़ और कटरुआ कांड की भयावह यादें

पीलीभीत। नेपाल सीमा से सटे पीलीभीत जिले का खालिस्तानी आतंकवाद से पुराना और भयावह संबंध रहा है। 1980 और 1990 के दशक में यह इलाका खालिस्तान समर्थक आतंकियों का बड़ा ठिकाना बना रहा। हाल ही में खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के तीन खतरनाक आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद पुरानी घटनाओं की यादें फिर ताजा हो गई हैं।

कटरुआ कांड: 29 ग्रामीणों की नृशंस हत्या

31 जुलाई 1992 को पीलीभीत के दियोरियाकलां जंगल में कटरुआ कांड घटित हुआ, जिसने पूरे देश को हिला दिया। घुंघचिहाई और शिवनगर गांव के 29 ग्रामीण जंगल में कटरुआ (जंगली सब्जी) बीनने गए थे, लेकिन वहां छिपे आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया और उनकी हत्या कर दी। तीन दिन बाद ग्रामीणों के शव गढ़ा रेंज के जंगल में नदी किनारे मिले। इस सामूहिक हत्याकांड ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में सनसनी मचा दी।

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तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और प्रधानमंत्री के सलाहकार कुंवर जितेंद्र प्रसाद ने घटनास्थल का दौरा किया। इसके अलावा, न्यूरिया क्षेत्र के मंडरिया गांव में भी सात ग्रामीणों की हत्या और हजारा थाने को बम से उड़ाने जैसी घटनाओं ने पीलीभीत को खालिस्तानी आतंकवाद का गढ़ बना दिया था।

पुलिसकर्मियों की शहादत और सुरक्षा का अभाव

आतंकियों के हमले में माधोटांडा थाने के इंस्पेक्टर जितेंद्र सिंह यादव और हजारा थाने के इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह त्यागी शहीद हो गए। हाल ही में, शहीद राजेंद्र सिंह त्यागी के नाम पर पीलीभीत पुलिस लाइन के मुख्य द्वार का नामकरण किया गया।

उस दौर में आतंक का आलम यह था कि शाम ढलते ही कस्बों और बाजारों में सन्नाटा पसर जाता था। यहां तक कि पुलिस थानों के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते थे, और पुलिसकर्मी सादी वर्दी में ड्यूटी करने को मजबूर थे।

सुरक्षा में बढ़ोतरी और आतंकवाद का खात्मा

1990 के दशक की शुरुआत में आतंकवाद ने धीरे-धीरे दम तोड़ना शुरू कर दिया। आतंकियों और उनके समर्थकों की गिरफ्तारियां बढ़ीं। नागालैंड आर्म्ड फोर्स, आईटीबीपी और अन्य अर्धसैनिक बलों की तैनाती से सुरक्षा मजबूत हुई।

वर्तमान संदर्भ: नए खतरे की आहट?

हाल की घटनाओं ने एक बार फिर सवाल उठाए हैं कि क्या पीलीभीत में आतंकवाद की सक्रियता दोबारा लौटने की तैयारी हो रही है। कुछ महीने पहले खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह के पीलीभीत के एक धार्मिक स्थल पर शरण लेने की खबरें सामने आई थीं। इसके अलावा, पंजाब के गैंगस्टर राजेश डोंगरा के हत्यारों को माधोटांडा क्षेत्र में गिरफ्तार किया गया था।

पंजाब पुलिस की जांच में यह भी खुलासा हुआ था कि हत्या में इस्तेमाल असलहे पीलीभीत से ही गए थे। ये घटनाएं दिखाती हैं कि पीलीभीत में सुरक्षा और सतर्कता को और बढ़ाने की आवश्यकता है।

पीलीभीत का अतीत और हालिया घटनाएं इस बात की चेतावनी देती हैं कि क्षेत्र में आतंकवाद की किसी भी संभावित वापसी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।

Edited By: Parakh Khabar

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