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संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता
भारत की आर्थिक क्षमता का आंशिक उपयोग अब तक हुआ है, लेकिन यह कम श्रम भागीदारी और सामाजिक-राजनीतिक जटिलताओं जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है। इसके बावजूद, वैश्वीकरण के प्रभाव ने भारत को निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर किया है। वैश्वीकरण ने भारतीय समाज को बड़े पैमाने पर परिवर्तित किया है और इसके आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहरा प्रभाव डाला है।
भारत की वैश्विक स्थिति
स्टार्टअप और स्मार्ट सिटी पहल
भारत अब विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब बन चुका है। साथ ही, 100 स्मार्ट शहरों के विकास की योजना से देश की शहरी संरचना को मजबूत करने की दिशा में काम हो रहा है। वैश्वीकरण के कारण अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार में निवेश कर रही हैं, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को लाभ हो रहा है।
चुनौतियां और असमानताएं
वैश्वीकरण ने धन के असमान वितरण को भी बढ़ावा दिया है। इसका लाभ शहरी अभिजात वर्ग को हुआ है, जबकि ग्रामीण और सीमांत वर्ग अभी भी पीछे रह गए हैं।
आर्थिक विकास का संतुलन
1947 में स्वतंत्रता के समय भारत की वैश्विक आर्थिक हिस्सेदारी मात्र 2% थी, जो 2023 तक 7.93% तक पहुंच गई। हालांकि, भारत के आर्थिक भविष्य का आधार अंतरराष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण और आत्मनिर्भरता के बीच संतुलन पर टिका है।
घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
समुत्थानशील आपूर्ति शृंखलाएं: स्थिर और सुदृढ़ आपूर्ति शृंखलाओं की स्थापना की जानी चाहिए।
अनुसंधान एवं विकास: नवाचार और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए निवेश बढ़ाना चाहिए।
समावेशी विकास: आर्थिक लाभ सभी वर्गों तक पहुंचे, इसके लिए नीतिगत सुधार आवश्यक हैं।
पर्यावरण संरक्षण: विकास की गति को टिकाऊ बनाए रखने के लिए पर्यावरणीय संतुलन को प्राथमिकता देनी होगी।
भारत के लिए वैश्वीकृत दुनिया में अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है, जो रणनीतिक स्वायत्तता और घरेलू विकास पर समान रूप से केंद्रित हो। इससे भारत समावेशी और सतत विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा।